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Uploaded On 2025-04-15 13:45:53

स्वास्थ्य की रक्षा व भारत की आत्मनिर्भरता

भारत के बारे में एक आम धारणा यह है कि भारत भयंकर भूख से पीडि़त देश है।

भारत के बारे में एक आम धारणा यह है कि भारत भयंकर भूख से पीडि़त देश है। अगर हम वेल्टहंगरहिल्फ की रिपोर्ट पर यकीन करें तो आज भी भारत 127 देशों की सूची में भूख के मामले में 105वें स्थान पर है। लेकिन सच यह है कि आज भारत में बड़ी संख्या में लोग वजन कम होने से कम, बल्कि मोटापे की समस्या से ज्यादा पीडि़त हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लोगों से खाद्य तेलों का इस्तेमाल कम से कम 10 प्रतिशत कम करने की अपील की है। प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी है कि साल 2050 तक भारत में 44 करोड़ लोग मोटापे की समस्या से पीडि़त होंगे, जो कई बीमारियों की जड़ है। गौरतलब है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, कैंसर और स्ट्रोक समेत कई बीमारियां मुख्य रूप से मोटापे की वजह से होती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 और 2020-21 के अनुसार, इन 5 वर्षों में मोटापे से पीडि़त महिलाओं की संख्या 20.6 प्रतिशत से बढक़र 24 प्रतिशत हो गई, जबकि पुरुषों में यह 18.9 प्रतिशत से बढक़र 22.9 प्रतिशत हो गई। यानी हमारी लगभग एक-चौथाई आबादी मोटापे से पीडि़त है। मोटापे की समस्या आम तौर पर जीवनशैली से जुड़ी होती है। इसके कई कारण हैं, जिनमें शारीरिक श्रम की कमी, वसा (खाद्य तेल), चीनी और नमक का अधिक सेवन शामिल है।

 

अगर हम खाद्य तेलों के उपयोग की बात करें तो हम देखते हैं कि खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत, जो 1950 से 1960 के दशक में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष केवल 2.9 किलोग्राम थी, अब उद्योग रिपोर्ट के अनुसार बढक़र 19.4 किलोग्राम प्रति व्यक्ति वार्षिक हो गई है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 13 किलोग्राम की अनुशंसित खपत और आईसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद) की सिफारिश, प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 12 किलोग्राम से कहीं अधिक है। गौरतलब है कि जनसंख्या 1951 में 35.4 करोड़ से बढक़र 2023 तक 143.8 करोड़ हो गई और इस अवधि के दौरान खाद्य तेलों की घरेलू उपलब्धता 13.8 लाख टन से बढक़र 114 लाख मीट्रिक टन हो गई। लेकिन इसी अवधि के दौरान 1951 में खाद्य तेलों के नगण्य आयात की तुलना में, 2022-23 तक यह 164.7 लाख टन तक पहुंच गया। घरेलू उत्पादन में आयात को जोडक़र, खाद्य तेलों की कुल उपलब्धता 2022-23 तक 278.7 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गई। यह ध्यान देने योग्य है कि यदि खाद्य तेलों की खपत आईसीएमआर द्वारा अनुशंसित सीमा के भीतर हो तो भले ही घरेलू उत्पादन मौजूदा स्तर पर बना रहे, भारत को खाद्य तेलों के आयात की आवश्यकता केवल 56.64 लाख मीट्रिक टन होगी।

 

खाद्य तेल मिशन : देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने तथा आयात पर बोझ कम करने के लिए भारत सरकार द्वारा अक्टूबर 2024 में खाद्य तेल मिशन शुरू किया गया, जिसके अनुसार 10103 करोड़ रुपए का व्यय किया जाएगा तथा प्राथमिक तिलहनों का उत्पादन वर्ष 2022-23 में 390 लाख टन से बढ़ाकर अगले 7 वर्षों में 697 लाख टन करने का लक्ष्य रखा गया है। कहा जा सकता है कि इससे आयात पर निर्भरता कम होगी। और यदि प्रधानमंत्री की अपील भी कारगर रही तो आयात और भी कम हो जाएगा।

 

घटिया तेलों की खपत भी कम होगी : वर्तमान में भारत में उत्पादित खाद्य तेलों का 67.4 प्रतिशत विभिन्न प्राथमिक तिलहनों से, 5.1 प्रतिशत नारियल से, 2.2 प्रतिशत ताड़ से, 11.0 प्रतिशत कपास के बीजों से, 9.8 प्रतिशत चावल की भूसी से, 3.1 प्रतिशत तिलहनों के सॉल्वेंट निष्कर्षण से तथा 1.4 प्रतिशत वनों एवं वृक्षों से प्राप्त होता है। देश में विभिन्न प्रकार के तिलहनों का उत्पादन पारंपरिक तरीके से किया जाता है। भारत के पारंपरिक खाद्य तेल काफी हद तक स्वास्थ्य के लिए अच्छे माने जाते हैं। लेकिन विदेशों पर हमारी निर्भरता के कारण देश में बड़ी मात्रा में ऐसे तेल आयात और उपयोग होने लगे, जिन्हें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है। यह भी माना जाता है कि जीएम खाद्य तेलों का भी अवैध रूप से बड़ी मात्रा में आयात किया जा रहा है। आज जब भारत में खाद्य तेलों की कुल खपत का 57 फीसदी आयात से पूरा होता है, जिसमें से 59 फीसदी पाम ऑयल से आता है। इसके अलावा सूरजमुखी तेल, सोयाबीन तेल, पाम ऑयल का भी आयात किया जाता है। भारत के अपने उत्पादित तेलों में सरसों तेल की हिस्सेदारी 33 फीसदी, मूंगफली तेल की 25.4 फीसदी और सोयाबीन की 19 फीसदी है। सरसों तेल का भारतीय खानपान में काफी महत्व है और यह सबसे ज्यादा लोकप्रिय भी है। लेकिन खाद्य तेलों के अपर्याप्त उत्पादन और प्रति व्यक्ति खपत में लगातार वृद्धि तथा बढ़ती जनसंख्या के कारण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पाम ऑयल जैसे तेल भी बड़ी मात्रा में भारत में प्रवेश कर चुके हैं।

 

पाम ऑयल के हानिकारक प्रभाव : भारत में बड़ी मात्रा में आयात किया जाने वाला पाम ऑयल, जो अब हमारी खाद्य श्रृंखला का एक प्रमुख हिस्सा बन चुका है, वास्तव में स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इसमें संतृप्त वसा की उच्च मात्रा के कारण हानिकारक एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बढऩे की संभावना है, जिससे हृदय रोग, मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन सस्ता होने के कारण इसका आयात लगातार बढ़ रहा है। यह भी माना जाता है कि भारत में सरसों के तेल में ब्लेंडिंग के नाम पर बड़ी मात्रा में पाम ऑयल मिलाकर बेचा जाता है। इसके अलावा जीएम तेलों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव की चिंता भी महत्वपूर्ण है।

 

सही समय पर सही सलाह : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत के लोगों को दी गई यह सलाह कि उन्हें अपने भोजन में खाद्य तेलों का उपयोग कम करना चाहिए, एक नेक सलाह है। यह अनुभव किया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी लोकप्रियता के कारण लोगों को जो भी सलाह या अपील करते हैं, उसका लोगों पर निश्चित रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। चाहे खुले में शौच से जुड़ी अपील हो, या स्वच्छता की बात हो, या कोविड के दौरान टीका लगवाने की सलाह हो, या गैस सब्सिडी छोडऩे की बात हो, ऐसे कई उदाहरण हैं जहां लोगों ने प्रधानमंत्री की बातों को बहुत गंभीरता से लिया और देश तथा समाज को इससे बहुत लाभ हुआ। इसी तरह प्रधानमंत्री द्वारा लोगों को अपने भोजन में खाद्य तेलों की खपत 10 प्रतिशत कम करने की दी गई सलाह वास्तव में देश के लोगों के स्वास्थ्य और देश की अर्थव्यवस्था दोनों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। वर्ष 2030 में 151 करोड़ की अपेक्षित आबादी के साथ, यदि देश में खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति वार्षिक खपत 10 प्रतिशत कम हो जाती है, वहीं दूसरी ओर खाद्य तेल मिशन के उद्देश्यों के अनुसार देश में खाद्य तेलों का उत्पादन 2022-23 में 114 टन से 78 प्रतिशत बढक़र वर्ष 2030 तक 203 लाख टन हो जाता है, तो इसका कुल प्रभाव यह होगा कि देश में खाद्य तेलों का आयात वर्तमान 164.7 लाख टन से घटकर मात्र 60.7 लाख टन रह जाएगा, यानी आयात में 63 प्रतिशत की कमी आएगी। देश से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा का बहिर्गमन भी आनुपातिक रूप से कम हो जाएगा। लेकिन इसके साथ ही, यदि हमारे खाद्य तेल की खपत कम हो जाती है, तो वर्ष 2030 तक देश में मोटापे से ग्रस्त लोगों की संख्या वर्तमान जनसंख्या के एक-चौथाई से बढक़र 44 प्रतिशत हो सकती है, की चिंता का भी कुछ हद तक समाधान हो जाएगा। इससे बीमारियां कम होंगी, बीमारियों पर होने वाला खर्च बचेगा और साथ ही लोगों की कार्यक्षमता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इतना ही नहीं, देश के किसान, जो सस्ते पाम ऑयल के आयात के कारण फिलहाल तिलहनों का उचित मूल्य नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं, उन्हें भी अपने तिलहनों पर बेहतर मूल्य मिलने लगेंगे, जिससे देश में तिलहन उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। इस सलाह का व्यापक प्रचार-प्रसार करने की आवश्यकता है।