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Uploaded On 2024-11-29 11:11:15

मां तो आखिर मां होती है

वो चुपचाप ना जाने कितनी कुर्बानियां देती है अपनी जरूरतें मार कर हमारे शौक पूरा करती है।

एक छोटे से कसबे में समीर नाम का एक लड़का रहता था। बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने के कारण परिवार की आर्थिक स्थिति बड़ी दयनीय थी, समीर की मां कुछ पढ़ी-लिखी जरुर थीं लेकिन उतनी पढाई से नौकरी कहां मिलने वाली थी सो घर-घर बर्तन मांज कर और सिलाई-बुनाई का काम करके किसी तरह अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा रही थीं। समीर स्वाभाव से थोड़ा शर्मीला था और अक्सर चुप-चाप बैठा रहता था। एक दिन जब वो स्कूल से लौटा तो उसके हाथ में एक लिफाफा था। उसने मां को लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, ‘मां, मास्टर साहब ने तुम्हारे लिए ये चिट्ठी भेजी है, जरा देखो तो इसमें क्या लिखा है?’ मां ने मन ही मन चिट्ठी पढ़ी और मुस्कुरा कर बोलीं, ‘बेटा, इसमें लिखा है कि आपका बेटा काफी होशियार है, इस स्कूल के बाकी बच्चों की तुलना में इसका दिमाग बहुत तेज है और हमारे पास इसे पढ़ाने लायक शिक्षक नहीं हैं, इसलिए कल से आप इसे किसी और स्कूल में भेजें।’ यह बात सुन कर समीर को स्कूल न जा सकने का दुःख तो हुआ पर साथ ही उसका मन आत्मविश्वास से भर गया कि वो कुछ खास है और उसकी बुद्धि तीव्र है। मां, ने उसका दाखिला एक अन्य स्कूल में करा दिया। समय बीतने लगा, समीर ने खूब मेहनत से पढाई की, आगे चल कर उसने सिविल सर्विसेज परीक्षा भी पास की और आईएएस ऑफिसर बन गया। समीर की मां अब बूढी हो चुकीं थीं, और कई दिनों से बीमार भी चल रही थीं, और एक दिन अचानक उनकी मृत्यु हो गयी। समीर के लिए ये बहुत बड़ा आघात था, वह बिलख-बिलख कर रो पड़ा उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब अपनी मां के बिना वो कैसे जियेगा... रोते-रोते ही उसने मां की पुरानी अलमारी खोली और हाथ में उनकी माला, चश्मा, और अन्य वस्तुएं लेकर चूमने लगा। उस अलमारी में समीर के पुराने खिलौने, और बचपन के कपड़े तक संभाल कर रखे हुए थे समीर एक-एक कर सारी चीजें निकालने लगा और तभी उसकी नजर एक पुरानी चिट्ठी पर पड़ी, दरअसल, ये वही चिट्ठी थी जो मास्टर साहब ने उसे 18 साल पहले दी थी। नम आंखों से समीर उसे पढने लगा- ‘‘आदरणीय अभिभावकआपको बताते हुए हमें अफसोस हो रहा है कि आपका बेटा समीर पढ़ाई में बेहद कमजोर है और खेल-कूद में भी भाग नहीं लेता है। जान पड़ता है कि उम्र के हिसाब से समीर की बुद्धि विकसित नहीं हो पायी है, अतः हम इसे अपने विद्यालय में पढ़ाने में असमर्थ हैं। आपसे निवेदन है कि समीर का दाखिला किसी मंद-बुद्धि विद्यालय में कराएं अथवा खुद घर पर रख कर इसे पढाएं। सादरप्रिन्सिपल’’ समीर जानता था कि भले अब उसकी मां इस दुनिया में नहीं रहीं पर वो जहां भी रहें उनकी ममता उनका आशीर्वाद सदा उस पर बना रहेगा! मां से बढ़कर त्याग और तपस्या की मूरत भला और कौन हो सकता है ? हम पढ़-लिख लें, बड़े हो कर कुछ बन जाएं इसके लिए वो चुपचाप ना जाने कितनी कुर्बानियां देती है, अपनी जरूरतें मार कर हमारे शौक पूरा करती है। यहां तक कि संतान बुरा व्यवहार करे तो भी मां उसका भला ही सोचती है! सचमुच, मां जैसा कोई नहीं हो सकता!